ट्रूथ या डेयर
ट्रुथ एंड डेयर
लगभग सबने खेला होगा...
तब बचपन था और बचपना भी...
जीवन में मुद्दे ही कम थे... जो थे उनमे झूठ बोलने की गुंजाइश भी कम थी ...इसलिए ट्रुथ सुनना बेमज़ा सी बात थी...
तो चुन लिया जाता था डेयर....
देनेवाले और लेनेवाले दोनों को फिर तो खूब मज़ा आता ...
जो चाहे करवा लो बन्दे से.....करनेवाला भी थोड़े नखरे के बाद करने को तैयार....
पर अब जबकि कई अनुभवों से गुजर चुके...समय की मार भी झेल लिया...भावनाओं को नियंत्रित कर मुखौटा लगाना सीख चुके...
अब भी कोइ कहे ट्रुथ या डेयर तो शायद डेयर ही चुना जाएगा...क्योंकि आज तो हम अपनेआप से भी सच नहीं बोल पाते....
कई सच के मुंह पर पट्टी बाँध मन के तहखाने में डाल देते हैं...
आज मुद्दे भी कई हैं और झूठ बोलने की गुंजाइश भी ज्यादा है...
उम्र ने समझदार बनाया तो सबसे पहल स्वयं का सच, स्वयं से छिपाना सिखाया है...
-----स्वयंबरा
लगभग सबने खेला होगा...
तब बचपन था और बचपना भी...
जीवन में मुद्दे ही कम थे... जो थे उनमे झूठ बोलने की गुंजाइश भी कम थी ...इसलिए ट्रुथ सुनना बेमज़ा सी बात थी...
तो चुन लिया जाता था डेयर....
देनेवाले और लेनेवाले दोनों को फिर तो खूब मज़ा आता ...
जो चाहे करवा लो बन्दे से.....करनेवाला भी थोड़े नखरे के बाद करने को तैयार....
पर अब जबकि कई अनुभवों से गुजर चुके...समय की मार भी झेल लिया...भावनाओं को नियंत्रित कर मुखौटा लगाना सीख चुके...
अब भी कोइ कहे ट्रुथ या डेयर तो शायद डेयर ही चुना जाएगा...क्योंकि आज तो हम अपनेआप से भी सच नहीं बोल पाते....
कई सच के मुंह पर पट्टी बाँध मन के तहखाने में डाल देते हैं...
आज मुद्दे भी कई हैं और झूठ बोलने की गुंजाइश भी ज्यादा है...
उम्र ने समझदार बनाया तो सबसे पहल स्वयं का सच, स्वयं से छिपाना सिखाया है...
-----स्वयंबरा
Comments