लडकी


लडकी,
बोल मत,
हंस मत,
देख मत,
सुन मत
ढांप खुद को,
खाना बना,
सफाई कर
और इन आवाज़ो से
थोडी सी फुरसत मिलते ही
लडकी
चुपके से
खोल देती है खिडकी
एक टुकडा धूप
और मुट्ठी भर हवा मे
अंगडाई लेकर
ठठाकर  हंस देती है
......स्वयम्बरा

Comments

Unknown said…
Baut sunder abhivyakti.... !!
बहुत ही बढ़िया

सादर
Unknown said…
waah bahut hi jabardast rachna...
Unknown said…
waah bahut hi jabardast rachna...
शुक्रिया ...आप सभी का
सुन्दर प्रस्तुति !
आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !