माँ सा हो जाना
सुनो जब भी डर जाऊँ मन पर फफोले हो जाएं भागना चाहूँ दूर बहुत दूर या अवसाद में डूबती जाऊं तब बैठ जाना पास मेरे, आंसू न पोंछना कि इससे कुछ नहीं होता कुछ न कहना कि तब शब्द भी काम नहीं आते बस छु भर लेना मुझे, हौले से काँधे पर हाथ रख देना सहला देना सर या सटा लेना माथा मेरा, अपनी छाती से बस, बस माँ सा हो जाना तुम सच कहती हूँ उस क्षणांश जादू होता है छुअन भर से मिट जाता है संताप सारा नैराश्य तिरोहित हो जाता है खारापन कहीं विलीन हो जाता है क्योंकि जब-जब मन दुःखता है न माँ को ही उचारता है माँ को ही पुकारता है ---स्वयंबरा